कोई काम छोटा-बड़ा नहीं होता। जो दायित्व मिले, उसे पूरी निष्ठा तथा मनोयोग से करो सफलता तुम्हारे चरण चूमेगी
निष्ठा और परिश्रम
शेक्सपियर बचपन में ही अनाथ हो गए थे। उनके पिता की मृत्यु हुई, तो वह यह सोचकर रो पड़े कि अपने परिवार का पालन-पोषण कैसे करेंगे। बाइबिल पढ़ते समय उनकी निगाह एक पंक्ति पर पड़ी, जिसमें कहा गया था, ‘कोई काम छोटा-बड़ा नहीं होता। जो दायित्व मिले उसे पूरी निष्ठा तथा मनोयोग से करो-सफलता तुम्हारे चरण चूमेगी।’ इसी वाक्य ने उन्हें सांत्वना व शक्ति प्रदान की। काफी भागदौड़ के बाद उन्हें एक नाटक कंपनी में घोड़ों की देखभाल का काम मिल गया।
नाटक कंपनी के मालिक शेक्सपियर को प्रायः कोई न कोई पुस्तक पढ़ते देखते थे।
वह समझ गए कि इसकी पढ़ने में रुचि है। उधर शेक्सपियर नाटक देखने में भी पूरी दिलचस्पी लेते थे। नाटक कंपनी के मालिक ने उन्हें नाटकों की पांडुलिपि के अंशों को कागज पर साफ शब्दों में अंकित करने का काम सौंपा। नाटकों की नकल करते- करते वह स्वयं भी नाटक लिखने का प्रयास करने लगे। उनके अनुरोध पर कंपनी के मालिक ने उसे पढ़ा तो पीठ थपथपाते हुए कहा, ‘तुम तो बहुत अच्छा लिखते हो। इसे पूरा करो, हमारी नाटक कंपनी इसे प्रस्तुत करेगी।’ देखते ही देखते शेक्सपियर अंग्रेजी के श्रेष्ठ रचनाकारों में गिने जाने लगे।