हे राम! मै गुरु वशिष्ठ की बस्ती हूं… मेरी झोली में अयोध्या की नव्य आभा

– चमकने लगी अयोध्या को जाने वाली राह (नेशनल हाईवे)

– प्रभु राम की अयोध्या ने थामा बस्ती का हाथ, होगी नई उड़ान

नवनिधि पांडेय 

बस्ती। हे राम! मै गुरु वशिष्ठ की बस्ती हूं। युग युगांतर से मेरा यश है। आपके प्राकट्य से पहले त्रेतायुग में आपके जन्म का यज्ञ मेरी ही धरा (मख भूमि) पर हुई। हमें पुत्र कामेष्टि यज्ञ की कीर्ति मिली। सरमूल से मूल तक की यात्रा कर रही आपकी सरयू का रजत प्रवाह मेरा अमिट श्रृंगार है। महर्षि वशिष्ठ, ऋषि श्रृंगि, माता सांता मेरी तप है। पावन सलिला मनवर और कुआनो मेरी चूनर को कभी सुनहला तो कभी धानी बनाती है। हां मैं अवध तो नहीं हूं लेकिन, आपकी महिमा की सृजनकार जरुर हूं। आपकी स्मृतियों को संजोते- संजोते मैं भी अविनाशी बन गई। जब गुरु वशिष्ठ के आश्रम में शास्त्रीय नीति की शिक्षा के लिए आपके नन्हें-नन्हें पांव पड़े थे तो आंचल बिछाकर अपने राम को दुलारने का सौभाग्य मुझे ही प्राप्त हुआ था। अविस्मरणीय तो वह भी है जब ब्याह होने के बाद माता सीता के साथ मिथिला से आप अवध लौटे थे। तब त्रिभुवन की उस लौकिक अद्वितीय जोड़ी को निहारकर मेरी दृष्टि सुदृष्टि बन गई थी। मेरी जिस धरा पर आप चले वह अनंत काल की राह बन गई। वह है राम जानकी मार्ग.. हरि-रहिया (वर्तमान में हर्रैया)। जहां आप विश्राम किए वह धाम बन गए, मोक्षेश्वर धाम। माता सीता की प्यास बुझाने के लिए जहां आपने रेखा खींची वह नदी बन गई। उस रामरेखा का अविरल प्रवाह आज भी मैं बरकरार रखी हूं। यह विलक्षण उपहार तो हमें त्रेता में मिला। कलयुग में मेरे राम फिर अयोध्या आ रहे हैं। यह देख मै फिर निहाल हो रही हूं। राम के बिना न मै तब थी और न अब रहूंगी। इस बार भी जाकर नाम सुनत शुभ हुई, मोरे गृह आवा प्रभु सोई जैसी खुशी हमें पुलकित कर रही है। मेरे हिस्से में राम की अयोध्या खुद साज- सज्जा के साथ चली आ रही हैं। मेरी झोली नव्य अयोध्या की आभा से भरती जा रही है। मै आश्रम से अब तीर्थ बनने जा रही हूं। मै राह से परिक्रमा बनने जा रही हूं। मै यज्ञ स्थल से प्रभु श्रीराम का कारीडोर बनने जा रही हूं। हां श्री रामलला कारीडोर मेरे मखौड़ा तक आएगा। 84 कोसी परिक्रमा मार्ग मेरी ही धरा से गुजरेगा। नव्य अयोध्या की आभा में मेरे 124 गांव सजने- संवरने की ओर हैं। यह सब देख मुझे फिर से यह अनुभूति हो रही है। मेरा कण- कण राम का है। मैं राम की पाठशाला हूं। मै राम की यज्ञशाला हूं। इस बार राम की अयोध्या ने मेरा हाथ थामा है। मुझे अटूट विश्वास है मेरी उड़ान अब रूकने और थमने वाली नहीं है…।

 

22 दिसंबर को श्री रामलला अपने नव्य- भव्य मंदिर के विग्रह में विराजेंगे। आतिथ्य सत्कार के लिए मैं भी सज धज रही हूं। अयोध्या तक पहुंचाने वाली मेरी राह (हाईवे) पहले से स्वच्छ और सुंदर बनाई जा रही है। देश विदेश के अतिथियों के लिए मेरे विश्राम स्थल होटल, लॉज, गेस्ट हाउस सब नई चमक दमक के साथ तैयार हो रहे हैं। मखमली बिस्तर, लग्जरी शोफा, बारह व्यंजनों की थाल न जाने क्या- क्या इंतजाम है। जब- जब राम मंदिर आंदोलन की ज्वाला प्रस्फुटित हुई तब- तब मै राम भक्तों के साथ खड़ी मिली। अब परिदृश्य बदला है। रामकाज के लिए वैश्विक माहौल सृजित हुआ है। अब मै मंगला चारण का गान करने को तैयार हूं। मेरी राह से जो भी गुजरेगा मंगल भवन अमंगल हारी की गूंज उनके कानों तक जरूर पहुंचाऊंगी।

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