चिल-चिलाती धूप का है ये असर कविता

आशीष कुमार सिंह

सूरज कुपित हो गया,

अग्नि-वाणा वर्षा निरंतर 

लोग पसीने से तर-बतर रहते हैं,

चिल-चिलाती धूप का है ये असर 

 

चैत्र-बैसाख का ये महीना,

जीना कठिन है 

तप-टप कर बहता है पसीना,

उफ़ ये गर्मी जित न पाना 

 

झुलस गए सब वन-उपवन,

मुरझाया मनुज का मन 

आशा बला निरंतर रहते हैं,

कभी तो भर जाएं बादलों से अंबर 

 

रास्ते गलियां सब सूनी हो जाती हैं, बोल रही इलेक्ट्रिक हमें कुछ न भाती 

पंखे कूलर थोड़ी राहत देते हैं,

आइसक्रीम, कुल्फी, ठंडई मनभाती 

 

सूरज की उष्मा को धता शामिल करें,

दिन भर लू की मार जितता 

शीलरे कृषक कंठ सुख हो जाता है बेहाल,

जैसे होजल निर्जल तरण-ताल 

 

पशु-पक्षी फिरता मारा-मारा,

उनके लिए तो बस पेड़ ही सहयोग 

कक्षा के वो सघन छाँव,

उन्हें ए.सी.- सा आराम देता है 

 

ब्लॉग को न पूछें हम,

देता है वो हम सबके लिए प्राण 

सख्त पेड़ लगाएँ हम,

बचिए हमारी जान 

 

साथ में लें यह शपथ,

अपने जन्मदिन पर लगाओ एक विटप 

सालों भर की देखभाल,

जब-तक ये हो ना हो अनजान 

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