केमिकल का कमाल, आलू भी हुआ लाल: बाराबंकी, लखनऊ-कानपुर से रंगा आलू की सप्लाई।

केमिकल का कमाल, आलू भी हुआ लाल: बाराबंकी, लखनऊ-कानपुर से रंगा आलू की सप्लाई।

 

गोरखपुर: बाजार में अब आलू भी लाल रंग में नजर आ रहा है। कोल्ड स्टोर में रखे पुराने, दागी आलू को केमिकल से रंगकर ताजा और चमकदार बनाकर बेचने का खेल जोरों पर है। बाराबंकी, उन्नाव, लखनऊ और कानपुर से आने वाले आलू को रंगकर गोरखपुर की सब्जी मंडियों में बेचा जा रहा है। यह रंग छिलके से भीतर तक समा जाता है, जो स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है। 

डॉ. धीरज सिंघानिया फिजिशियन, बताते हैं कि आलू पर इस्तेमाल होने वाला कृत्रिम रंग आमतौर पर औद्योगिक ग्रेड का होता है, जो खाद्य पदार्थों के लिए अनुपयुक्त है। यह रंग आंतों को नुकसान पहुंचाता है, जिससे पेट दर्द, उल्टी, दस्त और एलर्जी जैसी समस्याएं हो सकती हैं। लंबे समय तक सेवन से यह रक्त में घुलकर लिवर और किडनी को प्रभावित कर सकता है, जिससे कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। 

गोरखपुर की महेवा मंडी में रोजाना करीब 150 टन आलू की खपत होती है, जो ग्रामीण क्षेत्रों सहित 250 टन तक पहुंच जाती है। लगन के दिनों में यह डेढ़ गुना बढ़ जाती है। सूत्रों के अनुसार, वर्तमान में प्रतिदिन करीब 100 टन रंगा हुआ आलू मंडियों में बिक रहा है। सहायक आयुक्त (खाद्य सुरक्षा) डॉ. सुधीर कुमार सिंह ने बताया कि संदिग्ध आलू की जांच की जाएगी और हानिकारक रसायन पाए जाने पर व्यापारियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई होगी। 

लोगों से अपील है कि प्राकृतिक रूप से सुरक्षित दिखने वाले आलू को प्राथमिकता दें और संदिग्ध स्थिति में खाद्य सुरक्षा विभाग या स्थानीय प्रशासन को तुरंत सूचित करें।

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