यूपी में फर्जी विवाह पंजीकरण पर हाईकोर्ट की सख्ती, नए नियम लागू।
लखनऊ: 3 जून 2025 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश में विवाह पंजीकरण में धोखाधड़ी रोकने के लिए महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। कोर्ट ने निर्देश दिया कि यदि विवाह में परिवार के सदस्य मौजूद नहीं हैं, तो विवाह संस्कार कराने वाले की उपस्थिति और शपथपत्र अनिवार्य होगा। विवाह पंजीकरण केवल उस जिले में होगा, जहां वर या वधु स्थायी रूप से निवासी हों; अपंजीकृत किरायेदारी को मान्यता नहीं मिलेगी। यह कदम घर से भागे जोड़ों के फर्जी विवाह और पंजीकरण के रैकेट को रोकने के लिए उठाया गया है।
हाईकोर्ट ने 125 ऐसी याचिकाओं को एक साथ जोड़ा, जो फर्जी दस्तावेजों और गैर-कानूनी पंजीकरण से संबंधित थीं। जांच में खुलासा हुआ कि कई मामलों में शादी और पंजीकरण एक ही दिन में किए गए, जिसमें फर्जी गवाहों और गैर-मौजूद संगठनों द्वारा जारी प्रमाणपत्र शामिल थे। कोर्ट ने उप-पंजीयकों को 14 अक्टूबर 2024 की अधिसूचना का कड़ाई से पालन करने और आधार-आधारित सत्यापन, बायोमेट्रिक डेटा और दो गवाहों की उपस्थिति सुनिश्चित करने का आदेश दिया।
जस्टिस विनोद दिवाकर ने छह महीने में मजबूत पंजीकरण तंत्र विकसित करने का निर्देश दिया। परिवार के सदस्यों की मौजूदगी में विवाह की सत्यता पर विवेकाधीन छूट दी जा सकती है। यह फैसला विशेष रूप से उन जोड़ों पर लागू होगा, जो बिना परिवार की सहमति के विवाह करते हैं। कोर्ट ने कहा कि फर्जी प्रमाणपत्रों के जरिए सुरक्षा आदेश प्राप्त करने की प्रथा को रोका जाएगा, क्योंकि कई मामलों में गवाहों के आधार कार्ड और संस्थानों की वैधता संदिग्ध पाई गई। यह निर्णय यूपी में विवाह पंजीकरण की वैधता और पवित्रता सुनिश्चित करने की दिशा में एक बड़ा कदम है।