काशी की ज्ञान लैब ने खोले प्राचीन उत्पत्ति के राज, डीएनए से उजागर हुए पूर्वजों के रहस्य।
वाराणसी: बाबा विश्वनाथ की नगरी में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) की ज्ञान लैब डीएनए अनुसंधान के क्षेत्र में क्रांतिकारी खोज कर रही है। यह प्रयोगशाला न केवल मानवों, बल्कि पशुओं और प्राचीन प्रजातियों की उत्पत्ति का पता लगाकर इतिहास के पन्नों को पलट रही है। डॉ. ज्ञानेश्वर चौबे के नेतृत्व में यह लैब मेडिकल, क्रिमिनल और सामाजिक विवादों को सुलझाने में अदालतों और सरकारों की मदद करती है। यहां के शोधों ने न केवल आर्यन उत्पत्ति की औपनिवेशिक थ्योरी को चुनौती दी, बल्कि कोविड इम्युनिटी, हृदय रोगों के जोखिम और प्राचीन प्रजातियों की उत्पत्ति जैसे सवालों के जवाब भी दिए।
ज्ञान लैब ने सिद्ध किया कि आर्य भारतीय मूल के हैं, जिसने अंग्रेजों और मुगलों के दावों को गलत ठहराया। इस लैब ने चार्ली चैप्लिन के भारतीय संबंध, रोहिंग्या और संथाल समुदायों की उत्पत्ति, और रामायण काल की जनजातियों का श्रीलंका तक पता लगाया। कोविड-19 के दौरान शोध से यह भी खुलासा हुआ कि भारतीयों की रोग प्रतिरोधक क्षमता उनके पूर्वजों के डीएनए पर निर्भर करती है। लैब ने यह भी पाया कि 4.5% भारतीयों में कार्डियक अरेस्ट का खतरा सात गुना अधिक है।
मानव डीएनए के अलावा, लैब ने सुअर, मछली, हिमालयी यति और अमेरिकी भेड़िये जैसे प्राणियों के डीएनए का विश्लेषण किया। शोध से पता चला कि भारत में घोड़े 16,000 वर्षों से मौजूद हैं, और चंगेज खान का कोई डीएनए भारतीयों में नहीं है। लैब में 50,000 साल पुराने नमूनों का विश्लेषण भी होता है, और शादी से पहले स्वास्थ्य कुंडली तैयार की जाती है।
महाकुंभ के दौरान नागा साधुओं और कल्पवासियों के नमूने जुटाए गए। एक नमूने की लागत 4,000-5,000 रुपये है। आठ पीएचडी शोधार्थी, दो पोस्ट-डॉक्टरेट छात्र और चार लैब स्टाफ इस पावरहाउस का हिस्सा हैं। ज्ञान लैब के 12-15 शोधपत्र प्रतिवर्ष प्रकाशित होते हैं, जो इसे देश की अन्य पांच डीएनए लैब्स से आगे रखता है। यह लैब काशी को वैज्ञानिक शोध का वैश्विक केंद्र बना रही है।















