वो मुस्कुराते हैं, ‘जयसियाराम’ कहकर आशीर्वाद भी देते हैं, फिर बेसुध होकर बुदबुदाने लगते हैं – रामलला का मंदिर बनेगा, भव्य मंदिर बनेगा

आंखन देखी अयोध्या… दूसरी रिपोर्ट

वो मुस्कुराते हैं, ‘जयसियाराम’ कहकर आशीर्वाद भी देते हैं, फिर बेसुध होकर बुदबुदाने लगते हैं – रामलला का मंदिर बनेगा, भव्य मंदिर बनेगा

राममंदिर आंदोलन के योद्धा, रामजन्मभूमि तीर्थक्षेत्र ट्रस्ट के अध्यक्ष और मणिरामदास छावनी के महंत नृत्यगोपालदास की सबसे भावुक कहानी…

सुनि प्रभु बचन मगन सब भए। को हम कहाँ बिसरि तन गए॥
एकटक रहे जोरि कर आगे। सकहिं न कछु कहि अति अनुरागे॥

यानि, प्रभु के वचन सुनकर सब के सब प्रेममग्न हो गए। हम कौन हैं और कहाँ हैं? यह देह की सुध भी भूल गए। वे प्रभु के सामने हाथ जोड़कर टकटकी लगाए देखते ही रह गए। अत्यंत प्रेम के कारण कुछ कह नहीं सकते।

अयोध्या।

नीचे राम दरबार, मंदिर, चौपाईयां पढ़ते संत। और उसी मंदिर के पीछे से संकरी सीढ़ियों वाला एक रास्ता। सीढ़ियां खत्म होते ही सीआरपीएफ की एक चौकी। हथियारों से लैस सैनिक। और ऊपर छत को घेरी हुई कंटीली तारें, जो किसी वॉर जोन सी नजर आती हैं।
सामने एक बड़ा सा कांच और उसके दाहिने ओर बमुश्किल दो हथेली के बराबर एक खिड़की। खिड़की के ठीक नीचे ‘श्री गुरुदेव का चरणामृत’ लिखा स्टूल रखा है उस पर एक लौटे में पानी है। बीच में दान पेटी। और दूसरी ओर चरणपादुकाएं रखी हैं। उनपर ताजे फूल हैं।

यहां राममंदिर आंदोलन के योद्धा, रामजन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष और मणिरामदास छावनी के महंत नृत्यगोपालदास रहते हैं।

बड़े से कांच के पीछे पर्दा है। वहां मौजूद भक्त उस पर्दे के खुलने के पहले से वहां साष्टांग हो रहे हैं। कुछ देर बाद पर्दा खुलता है। पीछे अस्पताल के रोटेटिंग बेड पर सिरहाना लगाए गुरुजी बैठे हैं। पास खड़ा एक शिष्य उनके पैर दबा रहा है। वो प्यार से उसका सिर सहला देते हैं। वैसे 85 साल के नृत्यगोपालदास बमुश्किल कुछ कहते हैं। भक्तों को देखकर या तो मुस्कुरा देते हैं या फिर हाथ उठाकर आशिर्वाद देते वक्त उनके मुंह से जयसियाराम निकल जाता है।

12 साल के थे जब साधु बन अयोध्या आ गए। राममंदिर के लिए ताउम्र जीवन खपा दिया। अब इस उम्र में उन्हें कुछ याद तक नहीं। उनका मन और जहन किसी बच्चे सा हो चला है। अचानक बीती बिसरी बातों से उन्हें कुछ याद आता है और वो बुदबुदाने लगते हैं, रामलला का मंदिर बनेगा, भव्य मंदिर बनेगा। ये राममंदिर आंदोलन के सबसे मजबूत संत की बेहद भावुक कहानी है।

साए की तरह अपने गुरु के साथ रहनेवाले जानकी दास जी कहते हैं, ये लोग आपसे सवाल पूछने आए हैं। फिर दुलार से उन्हें समझाते हैं आप अध्यक्ष हैं ना इसलिए आपसे जानना चाहते हैं। नृत्यगोपाल दास वहां मौजूद लोगों को प्रसाद देने का इशारा करते हैं। खुद वो सारी उम्र सिर्फ फलाहार करते रहे हैं। सुबह कक्ष में बने मंदिर में पूजन होता है। फिर व्हीलचेयर पर बैठाकर उनको लिफ्ट से नीचे रामदरबार और बड़े हनुमान जी के दर्शन को ले जाते हैं।और व्हील चेयर पर ही परिक्रमा करते हैं। मोबाइल पर बांके बिहारी और मथुरा के मंदिरों के दर्शन भी करवाते हैं।

22 तारीख को वो भी रामलला के नए भव्य मंदिर में दर्शन को जाएंगे, शायद ये बात जानते तक नहीं। लेकिन मंदिर की बात सुनकर हर बार मुस्कुरा जरूर देते हैं। हां, दिन में कई बार बुदबुदाते हैं… जयसियाराम…सीताराम।

 

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