बाल किशोरों से खतरनाक कार्य कराना अब जेल की सैर! सुप्रीम कोर्ट की सख्ती, जानें नए नियम
गोरखपुर में बाल श्रम के खिलाफ सख्ती का नया अध्याय शुरू हो गया है। मंडलायुक्त सभागार में आयोजित एक महत्वपूर्ण बैठक में बाल एवं किशोर श्रम (प्रतिषेध और विनियमन) अधिनियम 1996, संशोधित 2016 के तहत नए नियमों की चर्चा ने सभी का ध्यान खींचा। यह अधिनियम न केवल बच्चों की सुरक्षा को मजबूत करता है, बल्कि उल्लंघन करने वालों को कठोर सजा का प्रावधान भी देता है। अब 14-18 वर्ष के किशोर-किशोरियों को खतरनाक व्यवसायों में काम कराना पूरी तरह प्रतिबंधित है, और नियम तोड़ने वालों को जेल की हवा खानी पड़ सकती है।
संशोधित अधिनियम के मुताबिक, 14-18 आयु वर्ग के किशोर-किशोरियां स्कूल के बाद पारिवारिक व्यवसाय में सहयोग कर सकते हैं, बशर्ते यह आय बढ़ाने का साधन न हो। परिवार की परिभाषा में केवल सगे माता-पिता, भाई-बहन और माता-पिता के भाई-बहन शामिल हैं। हालांकि, यह सहयोग रात 7 बजे से सुबह 8 बजे के बीच नहीं हो सकता। इसके अलावा, विज्ञापन, टीवी सीरियल, मनोरंजन या खेल की गतिविधियों में काम करने की छूट दी गई है, लेकिन कड़ी सुरक्षा शर्तों और संबंधित अधिकारी की पूर्व अनुमति जरूरी होगी। सर्कस जैसे खतरनाक मनोरंजन में यह छूट लागू नहीं होगी। किशोरों से किसी भी हाल में एक दिन में 6 घंटे से ज्यादा काम नहीं लिया जा सकता, जिसमें 1 घंटे का विश्राम और सप्ताह में एक अवकाश अनिवार्य है।
नए नियमों ने बाल श्रम को संज्ञेय अपराध की श्रेणी में रखा है, जिसके तहत कोई भी व्यक्ति या निरीक्षक सीधे थाने में एफआईआर दर्ज करा सकता है। अब पुलिस को विवेचना के लिए मजिस्ट्रेट की अनुमति की जरूरत नहीं होगी। उल्लंघन करने वालों को कम से कम 6 माह और अधिकतम 2 वर्ष की सजा, साथ ही 20,000 से 50,000 रुपये तक का जुर्माना हो सकता है। चौंकाने वाला प्रावधान यह है कि माता-पिता या अभिभावक भी अपने बच्चे से आय के स्रोत के रूप में काम कराने पर दंड के भागी होंगे। पहली बार चेतावनी दी जाएगी, लेकिन दोबारा ऐसा करने पर 10,000 रुपये तक का जुर्माना लगेगा।
बैठक में अपर आयुक्त (न्यायिक) जय प्रकाश, एसपी (अपराध) सुधीर जायसवाल, जिला विकास अधिकारी राज मणि वर्मा समेत कई अधिकारी मौजूद रहे। यह बैठक न केवल कानून की जानकारी देने का मंच थी, बल्कि समाज में जागरूकता फैलाने का भी एक प्रयास था। गोरखपुर प्रशासन ने साफ कर दिया कि बाल श्रम उन्मूलन अब उनकी प्राथमिकता है। स्थानीय लोगों में इस कदम की सराहना हो रही है, खासकर उन अभिभावकों में जो अपने बच्चों के भविष्य को लेकर चिंतित हैं।