ग़ज़ल
हज़ार ग़म सहे बस तेरी इक हंसी के लिए
तू ख़ुश रहे यही काफ़ी है ज़िन्दगी के लिए
सुबूत अपनी मुहब्बत का और क्या देते
कि ख़ुद को भूल गए हम तेरी ख़ुशी के लिए
अजीब दर्द भरा है ये ज़िंदगी का सफ़र
कहीं सुकूं नहीं मिलता है दो घड़ी के लिए
पता चला कि वोही मेरी जाॅं का दुश्मन है
मैं जाॅं लुटाती रही जिसपे दोस्ती के लिए
कभी जलाए थे जिस घर में उलफ़तों के चराग़
तड़प रही हूँ उसी घर में रोशनी के लिए
लिखा नहीं था जो हाथों की इन लकीरों में
तमाम उम्र तरसते रहे उसी के लिए
मैं छोड़ आई हूँ पीछे वो रास्ता नुसरत
तड़प ये कैसी है फिर भी उसी गली के लिए
उलफ़त… मोहब्बत
नुसरत अतीक़ गोरखपुरी