संतकबीरनगर: सात साल की मासूम की जान बचाने में डॉक्टर बना ‘हीरो’, गले से निकाला पांच रुपये का सिक्का।

संतकबीरनगर: सात साल की मासूम की जान बचाने में डॉक्टर बना ‘हीरो’, गले से निकाला पांच रुपये का सिक्का।

संतकबीरनगर, 

एक सात साल की बच्ची की जिंदगी उस वक्त खतरे में पड़ गई जब खेल-खेल में निगला गया पांच रुपये का सिक्का उसके गले में फंस गया। लेकिन जिला अस्पताल के चिकित्सक डॉ. संतोष कुमार त्रिपाठी की सूझ-बूझ और अथक प्रयासों ने नन्ही जान को नया जीवन दे दिया। परिजनों ने इसे चमत्कार बताते हुए डॉक्टर का दिल से आभार जताया।

क्या हुआ था?

बात शुक्रवार रात की है। संतकबीरनगर के ग्राम बाकरगंज (पोस्ट पचपोखरी) निवासी मोहम्मद यूसुफ की सात साल की बेटी आरिफा अपने घर में खेल रही थी। अचानक उसने पांच रुपये का सिक्का मुँह में डाल लिया, जो गलती से निगलते वक्त उसके गले में फंस गया। सिक्का गले के अंदरूनी हिस्से में जा अटका, जिससे बच्ची को सांस लेने में तकलीफ होने लगी। परिजन घबराकर उसे तुरंत जिला अस्पताल लेकर पहुंचे।

डॉक्टर की सूझ-बूझ से बची जान

अस्पताल में मौजूद डॉ. संतोष कुमार त्रिपाठी ने बिना देर किए बच्ची का इलाज शुरू किया। पहले एक्स-रे से पता लगाया गया कि सिक्का गले में गहराई तक फंसा हुआ है। स्थिति नाजुक थी, लेकिन डॉक्टर ने हिम्मत नहीं हारी। बच्ची को बेहोश करने के बाद उन्होंने विशेष औजारों की मदद से सावधानीपूर्वक सिक्के को बाहर निकालने की प्रक्रिया शुरू की। करीब आधे घंटे की मेहनत के बाद, बिना किसी ऑपरेशन के, सिक्का सफलतापूर्वक बाहर निकाल लिया गया।

डॉ. त्रिपाठी ने बताया, “यह एक चुनौतीपूर्ण स्थिति थी। सिक्का गले के संवेदनशील हिस्से में फंसा था, लेकिन टीमवर्क और सही तकनीक से हम इसे निकालने में सफल रहे। बच्ची अब पूरी तरह स्वस्थ है।”

परिजनों की आँखों में खुशी के आँसू

सिक्का निकलते ही अस्पताल में मौजूद परिजनों ने राहत की सांस ली। आरिफा के पिता मोहम्मद यूसुफ ने कहा, “डॉक्टर साहब हमारे लिए भगवान बनकर आए। उनकी वजह से हमारी बेटी आज सही-सलामत है।” बच्ची की माँ ने भी डॉक्टर के पैर छूकर आभार जताया और कहा, “हमारी नन्ही आरिफा फिर से मुस्कुरा रही है, यह हमारे लिए सबसे बड़ी खुशी है।”

बच्चों की सुरक्षा के लिए सलाह

इस घटना के बाद डॉ. त्रिपाठी ने अभिभावकों को सलाह दी कि छोटे बच्चों को सिक्के, मूँगफली या छोटी वस्तुओं से दूर रखें, क्योंकि ये चीजें आसानी से गले में फंस सकती हैं। उन्होंने कहा, “ऐसी स्थिति में तुरंत अस्पताल पहुँचना ही समझदारी है।”

एक प्रेरणादायक उदाहरण

यह घटना न केवल डॉ. संतोष कुमार त्रिपाठी की कुशलता को दर्शाती है, बल्कि यह भी बताती है कि समय पर सही कदम उठाने से कितनी बड़ी मुसीबत टल सकती है। जिला अस्पताल में मौजूद स्टाफ ने भी इस सफलता पर खुशी जताई और इसे एकजुटता का परिणाम बताया।

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